Himanshu Shah

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“ज़हर की कीच में ही आ गये जब, कलुष बन कर कलुष पर छा गये जब, दिखाना दोष फिर क्या अन्य जन में, अहं से फूलना क्या व्यर्थ मन में?
रश्मिरथी
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