Himanshu Shah

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“पर, एक विनय है मधुसूदन! मेरी यह जन्म-कथा गोपन मत कभी युधिष्ठिर से कहिये, जैसे हो, इसे दवा रहिये। वे इसे जान यदि पायेंगे, सिंहासन को ठुकरायेंगे। “साम्राज्य न कभी स्वयं लेंगे, सारी सम्पत्ति मुझे देंगे, मैं भी न उसे रख पाऊँगा, दुर्योधन को दे जाऊँगा। पाण्डव वंचित रह जायेंगे, दुख से न छूट वे पायेंगे।
रश्मिरथी
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