Himanshu Shah

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“रे अश्वसेन! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी, सीमित वन में ही नहीं, बहुत बसते पुर - ग्राम - घरों में भी। ये नर-भुजङ्ग मानवता का पथ कठिन बहुत कर देते हैं, प्रतिबल के वध के लिए नीच साहाय्य सर्प का लेते हैं।
रश्मिरथी
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