Himanshu Shah

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“बड़े पापी हुए जो ताज माँगा, किया अन्याय; अपना राज माँगा। नहीं धर्मार्थ वे क्यों हारते हैं? अधी हैं, शत्रु को क्यों मारते हैं? “हमी धर्मार्थ क्या दहते रहेंगे? सभी कुछ मौन हो सहते रहेंगे? कि देंगे धर्म को बल अन्य जन भी? तजेंगे क्रुरता-छल अन्य जन भी? “न दी क्या यातना इन कौरवों ने? किया क्या-क्या न निर्घिन कौरवों ने? मगर, तेरे लिए सब धर्म ही था, दुरित निज मित्र का, सत्कर्म ही था।
रश्मिरथी
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