Himanshu Shah

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“तेरे महातेज के आगे मलिन हुआ जाता हूँ, कर्ण! सत्य ही, आज स्वयं को बड़ा क्षुद्र पाता हूँ। आह! खली थी कभी नहीं मुझकों यों लघ़ुता मेरी, दानी! कहीं दिव्य है मुझसे आज छाँह भी तेरी।
रश्मिरथी
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