Himanshu Shah

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“लेकिन, नौका तट छोड़ चली, कुछ पता नहीं, किस ओर चली। यह बीच नदी की धारा है, सूझता न कूल-किनारा है। ले लील भले यह धार मुझे, लौटना नहीं स्वीकार मुझे।
रश्मिरथी
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