Himanshu Shah

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माँ का स्नेह पाया न कभी, सामने सत्य आया न कभी, क़िस्मत के फेरे में पड़कर, पा प्रेम बसा दुश्मन के घर। निज बन्धु मानता है पर को, कहता है शत्रु सहोदर को।
रश्मिरथी
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