Himanshu Shah

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“सूत-पुत्र मैं शूद्र कर्ण हूँ, करुणा का अभिलाषी हूँ, जो भी हूँ, पर, देव, आपका अनुचर अन्तेवासी हूँ। छली नहीं मैं हाय, किन्तु, छल का ही तो यह काम हुआ, आया था विद्या-संचय को, किन्तु, व्यर्थ बदनाम हुआ।
रश्मिरथी
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