“वृथा है पूछना किसने किया क्या, जगत् के धर्म को सम्बल दिया क्या! सुयोधन था खड़ा कल तक जहाँ पर, न हैं क्या आज पाण्डव ही वहाँ पर? “उन्होंने कौन-सा अपधर्म छोड़ा? किये से कौन कुत्सित कर्म छोड़ा? गिनाऊँ क्या? स्वयं सब जानते हैं, जगद्गुरू आपको हम मानते हैं, “शिखण्डी को बनाकर ढाल अर्जुन, हुआ गांगेय का जो काल अर्जुन, नहीं वह और कुछ, सत्कर्म ही था। हरे! कह दीजिये, वह धर्म ही था।