Himanshu Shah

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चकित, भीत चहचहा उठे कुंजों में विहग बिचारे, दिशा सत्र रह गयी देख यह दृश्य भीति के मारे। सह न सके आघात, सूर्य छिप गये सरक कर घन में, ‘साधु, साधु!‘ की गिरा मन्द्र गूँजी गम्भीर गगन में।
रश्मिरथी
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