रश्मिरथी
Rate it:
Read between February 2 - February 8, 2020
5%
Flag icon
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
6%
Flag icon
सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर, निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्‍भुत वीर।
9%
Flag icon
बड़े वंश से क्या होता है, खोटे हों यदि काम? नर का गुण उज्ज्वल चरित्र है, नहीं वंश-धन-धाम।
15%
Flag icon
धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान, जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान।
15%
Flag icon
“नहीं पूछता है कोई, तुम व्रती, वीर या दानी हो? सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो? मगर, मनुज क्या करे? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं, चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं।
17%
Flag icon
“सूत-पुत्र मैं शूद्र कर्ण हूँ, करुणा का अभिलाषी हूँ, जो भी हूँ, पर, देव, आपका अनुचर अन्तेवासी हूँ। छली नहीं मैं हाय, किन्तु, छल का ही तो यह काम हुआ, आया था विद्या-संचय को, किन्तु, व्यर्थ बदनाम हुआ।
20%
Flag icon
“व्रत का, पर, निर्वाह कभी ऐसे भी करना होता है; इस कर से जो दिया, उसे उस कर से हरना होता है।
22%
Flag icon
वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पाण्डव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है? मैत्री की राय बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पाण्डव का सन्देशा लाये। “दो न्याय अगर, तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वही खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे।” दुर्योधन वह भी दे न सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।
22%
Flag icon
हरि ने भीषण हुङ्कार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- “ज़ंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ-हाँ, दुर्योधन! बाँध मुझे।
22%
Flag icon
“यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झङ्कार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता ...
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
23%
Flag icon
“अम्बर में कुन्तल-जाल देख, पद के नीचे पाताल देख, मुट्‍ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख। सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं।
23%
Flag icon
“बाँधने मुझे तो आया है, ज़ंजीर बड़ी क्या लाया है? यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
23%
Flag icon
पहले तो बाँध अनन्त गगन। सूने को साध न सकता है, वह मुझे बाँध कब सकता
25%
Flag icon
माँ का स्नेह पाया न कभी, सामने सत्य आया न कभी, क़िस्मत के फेरे में पड़कर, पा प्रेम बसा दुश्मन के घर। निज बन्धु मानता है पर को, कहता है शत्रु सहोदर को।
26%
Flag icon
“जब ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ, कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल, धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?
28%
Flag icon
“कुन्ती ने केवल जन्म दिया, राधा ने माँ का कर्म किया, पर, कहते जिसे असल जीवन, देने आया वह दुर्योधन। वह नहीं भिन्न माता से है, बढ़कर सोदर भ्राता से है।
28%
Flag icon
ऋणी कर्ण का रोम-रोम, जानते सत्य यह सूर्य-सोम, तन, मन, धन दुर्योधन का है, यह जीवन दुर्योधन का है। सुरपुर से भी मुख मोड़ूँगा, केशव! मैं उसे न छोड़ूँगा।
28%
Flag icon
“रह साथ सदा खेला, खाया, सौभाग्य-सुयश उससे पाया, अब जब विपत्ति आने को है, घनघोर प्रलय छाने को है, तज उसे भाग यदि जाऊँगा, कायर, कृतघ्न कहलाऊँगा।
29%
Flag icon
“लेकिन, नौका तट छोड़ चली, कुछ पता नहीं, किस ओर चली। यह बीच नदी की धारा है, सूझता न कूल-किनारा है। ले लील भले यह धार मुझे, लौटना नहीं स्वीकार मुझे।
29%
Flag icon
“कुल-गोत्र नहीं साधन मेरा, पुरुषार्थ एक बस धन मेरा, कुल ने तो मुझको फेंक दिया, मैंने हिम्मत से काम लिया। अब वंश चकित भरमाया है, खुद मुझे खोजने आया है,
31%
Flag icon
“होकर समृद्धि-सुख के अधीन, मानव होता नित तप:क्षीण,
32%
Flag icon
“पर, एक विनय है मधुसूदन! मेरी यह जन्म-कथा गोपन मत कभी युधिष्ठिर से कहिये, जैसे हो, इसे दवा रहिये। वे इसे जान यदि पायेंगे, सिंहासन को ठुकरायेंगे। “साम्राज्य न कभी स्वयं लेंगे, सारी सम्पत्ति मुझे देंगे, मैं भी न उसे रख पाऊँगा, दुर्योधन को दे जाऊँगा। पाण्डव वंचित रह जायेंगे, दुख से न छूट वे पायेंगे।
33%
Flag icon
प्रण करना है सहज, कठिन है लेकिन, उसे निभाना, सबसे बड़ी जाँच है व्रत का अन्तिम मोल चुकाना। अन्तिम मूल्य न दिया अगर, तो और मूल्य देना क्या? करने लगे मोह प्राणों का-तो फिर प्रण लेना क्या?
33%
Flag icon
यह न स्वत्व का त्याग, दान तो जीवन का झरना है, रखना उसको रोक मृत्यु के पहले ही मरना है। किस पर करते कृपा वृक्ष‍़ यदि अपना फल देते हैं? गिरने से उसको सँभाल क्यों रोक नहीं लेते
34%
Flag icon
दान जगत् का प्रकृत धर्म है, मनुज व्यर्थ डरता है, एक रोज़ तो हमें स्वयं सब-कुछ देना पड़ता है। बचते वही, समय पर जो सर्वस्व दान करते हैं, ऋतु का ज्ञान नहीं जिनको, वे देकर भी मरते हैं।
37%
Flag icon
“ऐसा है तो मनुज-लोक, निश्चय, आदर पायेगा, स्वर्ग किसी दिन भीख माँगने मिट्टी पर आयेगा। किन्तु, भाग्य है बली, कौन किससे कितना पाता है, यह लेखा नर के ललाट में ही देखा जाता है।
37%
Flag icon
व्यर्थ है देख बड़ों को बड़ी वस्तु की आशा, किस्मत भी चाहिये, नहीं केवल ऊँची अभिलाषा।”
43%
Flag icon
चकित, भीत चहचहा उठे कुंजों में विहग बिचारे, दिशा सत्र रह गयी देख यह दृश्य भीति के मारे। सह न सके आघात, सूर्य छिप गये सरक कर घन में, ‘साधु, साधु!‘ की गिरा मन्द्र गूँजी गम्भीर गगन में।
43%
Flag icon
पाप हाथ से निकल मनुज के सिर पर जब छाता है, तब, सत्य ही, प्रदाह प्राण का सहा नहीं जाता है। अहंकारवश इन्द्र सरल नर को छलने आये थे, नहीं त्याग के महातेज-सम्मुख जलने आये थे।
44%
Flag icon
“तेरे महातेज के आगे मलिन हुआ जाता हूँ, कर्ण! सत्य ही, आज स्वयं को बड़ा क्षुद्र पाता हूँ। आह! खली थी कभी नहीं मुझकों यों लघ़ुता मेरी, दानी! कहीं दिव्य है मुझसे आज छाँह भी तेरी।
44%
Flag icon
धूम रहा मन-ही-मन लेकिन, मिलता नहीं किनारा, हुई परीक्षा पूर्ण, सत्य ही, नर जीता, सुर हारा।
45%
Flag icon
“तू दानी, मैं कुटिल प्रवंचक, तू पवित्र, मैं पापी, तू देकर भी सुखी और मैं लेकर भी परितापी। तू पहुँचा है जहाँ कर्ण, देवत्व न जा सकता है, इस महान् पद को कोई मानव ही पा सकता है।
51%
Flag icon
“उसको सेवा, तुमको सुकीर्त्ति प्यारी है, तु ठकुरानी हो, वह केवल नारी है। तुमने तो तन से मुझे काढ़ कर फेंका, उसने अनाथ को हृदय लगा कर सेंका।
52%
Flag icon
“जन्मा लेकर अभिशाप, हुआ वरदानी, आया बनकर कंगाल, कहाया दानी। दे दिये मोल जो भी जीवन ने माँगे, सिर नहीं झुकाया कभी किसी के आगे।
61%
Flag icon
“जीवन-सरिता की बड़ी अनोखी गति है, कुछ समझ नहीं पाती मानव की मति है। बहती प्रचण्डता से सबको अपनाकर, सहसा खो जाती महासिन्धु को पाकर।
63%
Flag icon
पाण्डव यदि केवल पाँच ग्राम लेकर सुख से रह सकते थे, तो विश्व-शान्ति के लिए दु:ख कुछ और न क्या सह सकते थे? सुन कुटिल वचन दुर्योधन का केशव न क्यों यह कहा नहीं- “हम तो आये थे शान्ति-हेतु, पर, तुम चाहो जो, वही सही।
63%
Flag icon
“लो, सुखी रहो, सारे पाण्डव फिर एक बार वन जायेंगे, इस बार, माँगने को अपना वे स्वत्व न वापस आयेंगे। धरती की शान्ति बचाने को आजीवन कष्ट सहेंगे वे, नूतन प्रकाश फैलाने को तप में मिल निरत रहेंगे वे।
64%
Flag icon
धीमी कितनी गति है? विकास कितना अदृश्य हो चलता है? इस महावृक्ष में एक पत्र सदियों के बाद निकलता है। थे जहाँ सहस्रों वर्ष पूर्व, लगता है वहीं खड़े हैं हम। है वृथा वर्ग, उन गुफावासियों से कुछ बहुत बड़े हैं हम।
66%
Flag icon
“क्या तत्त्व विशेष बचा? बेटा, आँसू ही शेष बचा।
69%
Flag icon
इसे क्रोध जब आता है; कुछ भी न शेष रह पाता है।
72%
Flag icon
धर्म पहुँचना नहीं, धर्म तो जीवन भर चलने में है। फैला कर पथ पर स्निग्ध ज्योति दीपक समान जलने में है। यदि कहें विजय, तो विजय प्राप्त हो जाती परतापी को भी, सत्य ही, पुत्र, दारा, धन, जन; मिल जाते हैं पापी को भी।
Himanshu Shah
Dharma is not tradition; it's a way of life
72%
Flag icon
इसलिए, ध्येय में नहीं, धर्म तो सदा निहित, साधन में है, वह नहीं किसी भी प्रधन-कर्म, हिंसा, विग्रह या रण में है।
72%
Flag icon
पर, हाय, मनुज के भाग्य अभी तक भी खोटे के खोटे हैं, हम बड़े बहुत बाहर, भीतर लेकिन, छोटे के छोटे हैं।
86%
Flag icon
जानते स्वाद इसका वे ही, जो सुरा स्वप्न की पीते हैं, दुनिया में रहकर भी दुनिया से अलग खड़े जो जीते हैं।”
Himanshu Shah
As J Krishnamoorthy says, "Observe your thoughts"
89%
Flag icon
“रे अश्वसेन! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी, सीमित वन में ही नहीं, बहुत बसते पुर - ग्राम - घरों में भी। ये नर-भुजङ्ग मानवता का पथ कठिन बहुत कर देते हैं, प्रतिबल के वध के लिए नीच साहाय्य सर्प का लेते हैं।
95%
Flag icon
“बड़े पापी हुए जो ताज माँगा, किया अन्याय; अपना राज माँगा। नहीं धर्मार्थ वे क्यों हारते हैं? अधी हैं, शत्रु को क्यों मारते हैं? “हमी धर्मार्थ क्या दहते रहेंगे? सभी कुछ मौन हो सहते रहेंगे? कि देंगे धर्म को बल अन्य जन भी? तजेंगे क्रुरता-छल अन्य जन भी? “न दी क्या यातना इन कौरवों ने? किया क्या-क्या न निर्घिन कौरवों ने? मगर, तेरे लिए सब धर्म ही था, दुरित निज मित्र का, सत्कर्म ही था।
96%
Flag icon
“वृथा है पूछना किसने किया क्या, जगत् के धर्म को सम्बल दिया क्या! सुयोधन था खड़ा कल तक जहाँ पर, न हैं क्या आज पाण्डव ही वहाँ पर? “उन्होंने कौन-सा अपधर्म छोड़ा? किये से कौन कुत्सित कर्म छोड़ा? गिनाऊँ क्या? स्वयं सब जानते हैं, जगद्गुरू आपको हम मानते हैं, “शिखण्डी को बनाकर ढाल अर्जुन, हुआ गांगेय का जो काल अर्जुन, नहीं वह और कुछ, सत्कर्म ही था। हरे! कह दीजिये, वह धर्म ही था।
96%
Flag icon
“वृथा है पूछना, था दोष किसका? खुला पहले गरल का कोष किसका? ज़हर अब तो सभी का खुल रहा है, हलाहल से हलाहल धुल रहा है।
Himanshu Shah
As is said in Geet-Ramayan(Marathi) : Paradhin aahe jagati, putra manavacha...dosh na kunacha!
97%
Flag icon
“ज़हर की कीच में ही आ गये जब, कलुष बन कर कलुष पर छा गये जब, दिखाना दोष फिर क्या अन्य जन में, अहं से फूलना क्या व्यर्थ मन में?
98%
Flag icon
“प्रभा-मण्डल! भरो झङ्कार, बोलो! जगत् की ज्योतियो! निज द्वार खोलो! तपस्या रोचिभूषित ला रहा हूँ, चढ़ा मैं रश्मि-रथ पर आ रहा हूँ।“