सब हैं मेरे मुख के अन्दर। “दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख, मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख, चर-अचर जीव, जग क्षर-अक्षर, नश्वर मनुष्य, सुरजाति अमर, शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र, शत कोटि सरित, सर, सिन्धु, मन्द्र; “शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश, शत कोटि जिष्णु, जलपति धनेश, शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल, शत कोटि दण्डधर लोकपाल। ज़ंजीर बढ़ाकर साध इन्हें, हाँ-हाँ, दुर्योधन! बाँध इन्हें। “भूलोक, अतल पाताल देख, गत और अनागत काल देख, यह देख, जगत् का आदि-सृजन, यह देख, महाभारत का रण; मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान, कहाँ इसमें तू है “अम्बर में कुन्तल-जाल देख, पद के नीचे पाताल देख, मुट्ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरूप
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