More on this book
Community
Kindle Notes & Highlights
वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पाण्डव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है? मैत्री की राय बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पाण्डव का सन्देशा लाये।
“दो न्याय अगर, तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वही खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे।” दुर्योधन वह भी दे न सका, आशिष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुङ्कार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- “ज़ंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ-हाँ, दुर्योधन! बाँध मुझे। “यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झङ्कार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें।
...more
सब हैं मेरे मुख के अन्दर। “दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख, मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख, चर-अचर जीव, जग क्षर-अक्षर, नश्वर मनुष्य, सुरजाति अमर, शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र, शत कोटि सरित, सर, सिन्धु, मन्द्र; “शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश, शत कोटि जिष्णु, जलपति धनेश, शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल, शत कोटि दण्डधर लोकपाल। ज़ंजीर बढ़ाकर साध इन्हें, हाँ-हाँ, दुर्योधन! बाँध इन्हें। “भूलोक, अतल पाताल देख, गत और अनागत काल देख, यह देख, जगत् का आदि-सृजन, यह देख, महाभारत का रण; मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान, कहाँ इसमें तू है “अम्बर में कुन्तल-जाल देख, पद के नीचे पाताल देख, मुट्ठी में तीनों काल देख, मेरा...
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
हँसने लगती है सृष्टि उधर। मैं जभी मूँदता हूँ लोचन, छा जाता चारों ओर मरण। “बाँधने मुझे तो आया है, ज़ंजीर बड़ी क्या लाया है? यदि मुझे बाँधना चाहे मन, पहले तो बाँध अनन्त गगन। सूने को साध न सकता है, वह मुझे बाँध कब सकता है? “हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना, तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ। याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा। “टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर, फण शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुँह खोलेगा। दुर्योधन! रण ऐसा होगा, फिर कभी नहीं जैसा होगा। “भाई पर भाई टूटेंगे, विष-बा...
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
चुप थे या थे बेहोश पड़े। केवल दो नर न अघाते थे, धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे। कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर...
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
“पद-त्राण भीम पहनायेगा, धर्माधिप चँवर डुलायेगा। पहरे पर पार्थ प्रवर होंगे, सहदेव-नकुल अनुचर होंगे। भोजन उत्तरा बनायेगी, पाञ्चाली पान खिलायेगी।
“जब ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ, कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल, धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?
“पत्थर-समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़कर प्रिय था, गोदी में आग लगा करके, मेरा कुल-वंश छिपा करके, दुश्मन का उसने काम किया; माताओं को बदनाम किया।