Pankaj Srivastava

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हँसा राधेय कर कुछ याद मन में, कहा, “हाँ, सत्य ही, सारे भुवन में। विलक्षण बात मेरे ही लिए है, नियति का घात मेरे ही लिए है।
रश्मिरथी
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