रश्मिरथी
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इस चार दिनों के जीवन को, मैं तो कुछ नहीं समझता हूँ, करता हूँ वही, सदा जिसको भीतर से सही समझता हूँ।
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हँसा राधेय कर कुछ याद मन में, कहा, “हाँ, सत्य ही, सारे भुवन में। विलक्षण बात मेरे ही लिए है, नियति का घात मेरे ही लिए है।