“अज्ञातशीलकुलता का विघ्न न माना, भुजबल को मैंने सदा भाग्य कर जाना। बाधाओं के ऊपर चढ़ धूम मचा कर, पाया सब-कुछ मैंने पौरुष को पाकर। “जन्मा लेकर अभिशाप, हुआ वरदानी, आया बनकर कंगाल, कहाया दानी। दे दिये मोल जो भी जीवन ने माँगे, सिर नहीं झुकाया कभी किसी के आगे।