Akash

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अपना कृत्य विचार, कर्ण का करतब देख निराला, देवराज का मुखमण्डल पड़ गया ग्लानि से काला। क्लिन्न कवच को लिये किसी चिन्ता में पगे हुए-से, ज्यों-के-त्यों रह गये इन्द्र जड़ता में ठगे हुए-से।
रश्मिरथी
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