Akash

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जियो, जियो, ब्राह्मणकुमार! तुम अक्षय कीर्त्ति कमाओगे, एक बार तुम भी धरती को निःक्षत्रिय कर जाओगे। निश्चय, तुम ब्राह्मणकुमार हो, कवच और कुण्डल-धारी, तप कर सकते और पिता-माता किसके इतने भारी?’
रश्मिरथी
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