Akash

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“नरोचित धर्म से कुछ काम तो लो। बहुत खेले, ज़रा विश्राम तो लो। फँसे रथचक्र को जब तक निकालूँ, धनुष धारण करूँ, प्रहरण सँभालूँ, “रूको तब तक, चलाना बाण फिर तुम, हरण करनां, सको तो, प्राण फिर तुम। नहीं अर्जुन! शरण मैं माँगता हूँ, समर्थित धर्म से रण माँगता हूँ। “कलङ्कित नाम मत अपना करो तुम। हृदय में ध्यान इसका भी धरो तुम, विजय तन की घड़ी भर की दमक है। इसी संसार तक उसकी चमक है।
रश्मिरथी
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