Akash

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सबकी पीड़ा के साथ व्यथा अपने मन की जो जोड़ सके, मुड़ सके जहाँ तक समय, उसे निर्दिष्ट दिशा में मोड़ सके। युगपुरुष वही सारे समाज का विहित धर्मगुरु होता है, सबके मन का जो अन्धकार अपने प्रकाश से धोता है।
रश्मिरथी
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