Akash

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सुन सहम उठा राधेय, मित्र की ओर फेर निज चकित नयन, झुक गया विवशता में कुरुपति का अपराधी, कातर आनन। मन-ही-मन बोला कर्ण, “पार्थ! तू वय का बड़ा बली निकला, या यह कि आज फिर एक बार, मेरा ही भाग्य छली निकला।”
रश्मिरथी
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