Akash

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और, वीर जो किसी प्रतिज्ञा पर आकर अड़ता है, सचमुच, उसके लिए उसे सब-कुछ देना पड़ता है। नहीं सदा भीषिका दौड़ती द्वार पाप का पाकर, दुःख भोगता कभी पुण्य को भी मनुष्य अपनाकर।
रश्मिरथी
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