Akash

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“जय मिले बिना विश्राम नहीं, इस समय सन्धि का नाम नहीं, आशिष दीजिये, विजय कर रण, फिर देख सकूँ ये भव्य चरण; जलय़ान सिन्धु से तार सकूँ; सबको मैं पार उतार सकूँ।
रश्मिरथी
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