Akash

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“मैं गरुड़, कृष्ण‍! मैं पक्षिराज, सिर-पर न चाहिये मुझे ताज। दुर्योधन पर है विपद्‍ घोर, सकता न किसी विधि उसे छोड़। रणखेत पाटना है मुझको, अहिपाश काटना है मुझको।
रश्मिरथी
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