Akash

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मगर, यह कर्ण की जीवन-कथा है, नियति का, भाग्य का इङ्गित वृथा है। मुसीबत को नहीं जो झेल सकता, निराशा से नहीं जो खेल सकता, पुरुष क्या, श्रृङ्खला को तोड़ करके, चले आगे नहीं जो जोर करके?
रश्मिरथी
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