Akash

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“तू दानी, मैं कुटिल प्रवंचक, तू पवित्र, मैं पापी, तू देकर भी सुखी और मैं लेकर भी परितापी। तू पहुँचा है जहाँ कर्ण, देवत्व न जा सकता है, इस महान् पद को कोई मानव ही पा सकता है।
रश्मिरथी
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