Akash

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औ’ जिस प्रकार हम आज बेल- बूटों के बीच खचित करके, देते हैं रण को रम्य रूप विप्लवी उमंगों में भरके; कहते, अनीतियों के विरुद्ध जो युद्ध जगत् में होता है, वह नहीं ज़हर का कोष, अमृत का बड़ा सलोना सोता है।
रश्मिरथी
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