कर्ण चकित रह गया सुयोधन की इस परम कृपा से, फूट पड़ा मारे कृतज्ञता के भर उसे भुजा से। दुर्योधन ने हृदय लगाकर कहा-“बन्धु! हो शान्त, मेरे इस क्षुद्रोपहार से क्यों होता उद्भ्रान्त? “किया कौन-सा त्याग अनोखा, दिया राज यदि तुझको? अरे, धन्य हो जायँ प्राण, तु ग्रहण करे यदि मुझको।“ कर्ण और गल गया, “हाय, मुझपर भी इतना स्नेह! वीर बन्धु! हम हुए आज से एक प्राण, दो देह।