“मगर, आज जो कुछ देखा, उससे धीरज हिलता है, मुझे कर्ण में चरम वीरता का लक्षण मिलता है। बढ़ता गया अगर निष्कण्टक यह उद्धट भट बाल, अर्जुन! तेरे लिए कभी वह हो सकता है काल! “सोच रहा हूँ क्या उपाय, मैं इसके साथ करूँगा, इस प्रचण्डतम धूमकेतु का कैसे तेज हरूँगा? शिष्य बनाऊँगा न कर्ण को, यह निश्चित है बात; रखना ध्यान विकट प्रतिभट का, पर तू भी हे तात!”