नरता कहते हैं जिसे, सत्त्व क्या वह केवल लड़ने में है? पौरुष क्या केवल उठा खड्ग मारने और मरने में है? तब उस गुण को क्या कहें मनुज जिससे न मृत्यु से डरता है? लेकिन, तब भी मारता नहीं, वह स्वयं विश्व-हित मरता है। है वन्दनीय नर कौन? विजय-हित जो करता है प्राण हरण? या सबकी जान बचाने को देता है जो अपना जीवन?