Upendra Kumar

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सस्ती क़ीमत पर बिकती रहती जबतक कुर्बानी, तबतक सभी बने रह सकते हैं त्यागी, बलिदानी। पर, महँगी में मोल तपस्या का देना दुष्कर है, हँस कर दे यह मूल्य, न मिलता वह मनुष्य घर-घर है।
रश्मिरथी
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