Piyush Sharma

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रथ से राधेय उतर आया, हरि के मन में विस्मय छाया, बोले कि “वीर! शत बार धन्य, तुझ-सा न मित्र कोई अनन्य। तू कुरूपति का ही नहीं प्राण, नरता का है भूषण महान्।
रश्मिरथी
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