Piyush Sharma

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“मित्रता बड़ा अनमोल रतन, कब इसे तोल सकता है धन? धरती की तो है क्या बिसात? आ जाय अगर वैकुण्ठ हाथ, उसको भी न्योछावर कर कुरूपति के चरणों पर धर दें
रश्मिरथी
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