Swapnil Dharpawar

40%
Flag icon
“मैं ही था अपवाद, आज वह भी विभेद हरता हूँ, कवच छोड़ अपना शरीर सबके समान करता हूँ। अच्छा किया कि आप मुझे समतल पर लाने आये, हर तनुत्र दैवीय; मनुज सामान्य बनाने आये।
रश्मिरथी
Rate this book
Clear rating