Swapnil Dharpawar

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“मही डोलती और डोलता नभ में देव-निलय भी, कभी-कभी डोलता समर में किंचित् वीर-हृदय भी। डोले मूल अचल पर्वत का, या डोले ध्रुवतारा, सब डोलें, पर नहीं डोल सकता है वचन हमारा।”
रश्मिरथी
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