Swapnil Dharpawar

5%
Flag icon
दान जगत् का प्रकृत धर्म है, मनुज व्यर्थ डरता है, एक रोज तो हमें स्वयं सब-कुछ देना पड़ता है। बचते वही समय पर जो सर्वस्व दान करते हैं, ऋतु का ज्ञान नहीं जिनको, वे देकर भी मरते हैं।
रश्मिरथी
Rate this book
Clear rating