Swapnil Dharpawar

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“फिर कहता हूँ, नहीं व्यर्थ राधेय यहाँ आया है, एक नया सन्देश विश्व के हित वह भी लाया है। स्यात्, उसे भी नया पाठ मनुजों को सिखलाना है, जीवन-जय के लिए कहीं कुछ करतब दिखलाना है। “वह करतब है यह कि शूर जो चाहे कर सकता है, नियति-भाल पर पुरुष पाँव निज बल से धर सकता है। वह करतब है यह कि शक्ति बसती न वंश या कुल में, बसती है वह सदा वीर पुरुषों के वक्ष पृथुल में।
रश्मिरथी
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