Pratibha Pandey

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ये तो साधन के भेद, किन्तु, भावों में तत्त्व नया क्या है? क्या खुली प्रेम की आँख अधिक? भीतर कुछ बढ़ी दया क्या है? झर गयी पूँछ, रोमान्त झरे, पशुता का झरना बाक़ी है; बाहर-बाहर तन सँवर चुका, मन अभी सँवरना बाक़ी है।
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रश्मिरथी
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