आजकल लोग बाजारों से ओट्स (जई) मँगाकर खाया करते हैं। आंशिक तुलना में यह गीत और मुक्तक का आनन्द है। मगर, कथा-काव्य का आनन्द खेतों में देशी पद्धति से जई उपजाने के आनन्द के समान है; यानी इस पद्धति से जई के दाने तो मिलते ही हैं, कुछ घास और भूसा भी हाथ आता है, कुछ लहलहाती हुई हरियाली देखने का भी सुख प्राप्त होता है और हल चलाने में जो मेहनत करनी पड़ती है, उससे कुछ तन्दुरुस्ती भी बनती है।
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