navagat

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जो मुझ पर इतना प्रेम उमड़ आया है। अब तक न स्नेह से कभी किसी ने हेरा, सौभाग्य किन्तु, जग पड़ा अचानक मेरा। “मैं खूब समझता हूँ कि नीति यह क्या है, असमय में जन्मी हुई प्रीति यह क्या है। जोड़ने नहीं बिछुड़े वियुक्त कुलजन से, फोड़ने मुझे आयी हो दुर्योधन से।
रश्मिरथी
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