navagat

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“अर्जुन की जननी! मुझे न कोई दुख है, ज्यों-त्यों मैंने भी ढ़ूँढ लिया निज सुख है। जब भी पीछे की ओर दृष्टि जाती है, चिन्तन में भी यह बात नहीं आती है।
रश्मिरथी
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