navagat

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“माँ का पय भी न पिया मैंने, उलटे, अभिशाप लिया मैंने। वह तो यशस्विनी बनी रही, सबकी भौं मुझपर तनी रही। कन्या वह रही अपरिणीता, जो कुछ बीता, मुझपर बीता।
रश्मिरथी
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