Onkar Thakur

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“होकर समृद्धि-सुख के अधीन, मानव होता नित तप:क्षीण, सत्ता, किरीट, मणिमय आसन, करते मनुष्य का तेज-हरण। नर विभव-हेतु ललचाता है, पर वही मनुज को खाता है।
रश्मिरथी
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