Onkar Thakur

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क्षुद्र पात्र हो मग्न कूप में जितना जल लेता है, उससे अधिक वारि सागर भी उसे नहीं देता है। अतः, व्यर्थ है देख बड़ों को बड़ी वस्तु की आशा, किस्मत भी चाहिये, नहीं केवल ऊँची अभिलाषा।”
रश्मिरथी
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