Onkar Thakur

31%
Flag icon
“चाँदनी, पुष्पछाया में पल, नर भले बने सुमधुर, कोमल, पर, अमृत क्लेश का पिये बिना, आतप, अन्धड़ में जिये बिना। वह पुरुष नहीं कहला सकता, विघ्नों को नहीं हिला सकता।
रश्मिरथी
Rate this book
Clear rating