Avinash K

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प्रण करना है सहज, कठिन है लेकिन, उसे निभाना, सबसे बड़ी जाँच है व्रत का अन्तिम मोल चुकाना। अन्तिम मूल्य न दिया अगर, तो और मूल्य देना क्या? करने लगे मोह प्राणों का-तो फिर प्रण लेना क्या? सस्ती क़ीमत पर बिकती रहती जबतक कुर्बानी, तबतक सभी बने रह सकते हैं त्यागी, बलिदानी। पर, महँगी में मोल तपस्या का देना दुष्कर है, हँस कर दे यह मूल्य, न मिलता वह मनुष्य घर-घर है।
रश्मिरथी
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