रश्मिरथी
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Read between March 28 - April 3, 2023
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“रहा नहीं ब्रह्मास्त्र एक, इससे क्या आता-जाता है? एक शस्त्र-बल से न वीर, कोई सब दिन कहलाता है। नयी कला, नूतन रचनाएँ, नयी सूझ, नूतन साधन, नये भाव, नूतन उमंग से, वीर बने रहते नूतन।
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सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।
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सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है?
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प्रण करना है सहज, कठिन है लेकिन, उसे निभाना, सबसे बड़ी जाँच है व्रत का अन्तिम मोल चुकाना। अन्तिम मूल्य न दिया अगर, तो और मूल्य देना क्या? करने लगे मोह प्राणों का-तो फिर प्रण लेना क्या? सस्ती क़ीमत पर बिकती रहती जबतक कुर्बानी, तबतक सभी बने रह सकते हैं त्यागी, बलिदानी। पर, महँगी में मोल तपस्या का देना दुष्कर है, हँस कर दे यह मूल्य, न मिलता वह मनुष्य घर-घर है।
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ईसा ने संसार-हेतु शूली पर प्राण गँवा कर, अन्तिम मूल्य दिया गांधी ने तीन गोलियाँ खाकर।
Avinash K
Why bring them here? Just to be politically correct? Breaks the flow.
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दान जगत् का प्रकृत धर्म है, मनुज व्यर्थ डरता है, एक रोज़ तो हमें स्वयं सब-कुछ देना पड़ता है।
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“विष तरह-तरह का हँसकर पीता आया, बस, एक ध्येय के हित मैं जीता आया।
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मुसीबत को नहीं जो झेल सकता, निराशा से नहीं जो खेल सकता,