Mukul Kumar

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बढ़कर विपत्तियों पर छाजा, मेरे किशोर! मेरे ताज़ा! जीवन का रस छन जाने दे, तन को पत्थर बन जाने दे। तू स्वयं तेज भयकारी है, क्या कर सकती चिनगारी है?
Mukul Kumar
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रश्मिरथी
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