anand  pathak

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“प्रासादों के कनकाभ शिखर, होते कबूतरों के ही घर, महलों में गरुड़ न होता है, कंचन पर कभी न सोता है। बसता वह कहीं पहाड़ों में, शैलों की फटी दरारों में।
रश्मिरथी
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