Garvit Pareek

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“मुझ-से मनुष्य जो होते हैं, कंचन का भार न ढोते हैं। पाते हैं धन बिखराने को, लाते हैं रतन लुटाने को। जग से न कभी कुछ लेते हैं, दान ही हृदय का देते हैं।
रश्मिरथी
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